पेड़ पर लगे हुए एक फ़ूल की कामना है,
“अगर हवाओं के साथ बहने के लिए थोड़ा ऊँचा हो जाऊँ”
ख़्याल रहना चाहिए उसको इतना ,
पेड़ से टूटकर उड़ तो सकता है पर जी नहीं सकता ।
तो क्या ऊँचा उड़ने की ख़्वाहिश की कीमत ज़िन्दगी ही है ?

ग़ुरूर को दरकिनार कर अगर वो सोच सके इतना ,
“क्यों न पेड़ को ऊँचा कर फिर लहरा उठूँ मैं”
ज़िन्दगी बच जाएगी, उसकी भी और पेड़ की भी ,
क्योंकि उस पेड़ को मुरझाते देर नहीं लगती ,
जिसका इकलौता फ़ूल उससे जुदा हो चले ।
पर फ़ूल को इतने ख़्याल आते कहाँ हैं ,
सोचना तो स्थिर पेड़ को आता है ,
फ़ूल तो बस पेड़ से पोषित होकर ख़ुद महकना जानता है ।

Bahut khoob
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Thank you 😊
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बहुत अच्छा!
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Thanks Ishaan 😊
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You’re welcome
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V good jeevan jeene ki seekh🌳🌺
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Thank you 🙂
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